मनोरंजक कथाएँ >> माता-पिता की सीख माता-पिता की सीखदिनेश चमोला
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माता-पिता की सीख बाल कहानी में बच्चों को माता-पिता की दी हुई सीख का वर्णन किया गया है।...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
माता-पिता की सीख
किसी गाँव में एक कुम्हार दम्पत्ति रहते थे। वे बहुत गरीब थे उनके चार
पुत्र थे। उनके गाँव के पास ही एक घना जंगल था। वहाँ कई शिकारी शिकार करने
आया करते। कुम्हार दम्पत्ति बहुत मेहनत करते लेकिन फिर भी उनका परिवार
आर्थिक रूप में परेशान रहता था। कुम्हार दम्पत्ति यह देखकर बहुत दुखी थे
कि वे दुर्लभ मिट्टी से कई तरह के बर्तन बनाते थे। लेकिन इतने पर भी कोई
उनको खरीदता नहीं था। उनके पास रहने के लिए केवल एक झोपड़ी थी जिससे कभी
बरसात में पानी भर जाने से कई बने-बनाए बर्तनों की भारी क्षति हो जाती थी।
यह देख कुम्हार दम्पत्ति को बहुत कष्ट होता।
दूसरी ओर जो भी शिकारी एक बार उनके पास आ जाता तो वहीं शिकार करते-करते धनवान हो जाता। उन्हें इस बात का रहस्य कभी ज्ञात न हो पाता। क्या किसी की हत्या करने पर ही धनवान बना जाता है ? वे अक्सर सोचते रहते। जब कुम्हार के बच्चे अपने खाने-पहनने की चीजों की माँग कभी उनसे करते तो उनकी बूढ़ी माँ कुम्हार को कोसने लग जाती है। यह देख बच्चों को भी बहुत कष्ट होता। एक दिन बूढ़े कुम्हार ने अपने सभी बच्चों को बुलाया व समझाते हुए कहा-
‘‘बच्चो ! देखो मैंने जीवन-भर ईमानदारी व सच्चाई से कार्य किया है। कहीं मेहनत में भी कोई कमी नहीं छोड़ी है.....लेकिन फिर भी गरीब का गरीब ही बना रहा......इसमें मेरा क्या दोष ? भला इससे अधिक मेरे हाथ में था भी क्या......अब तुम भी इसी प्रकार अपना जीवनयापन करना.... सच्चाई व ईमानदारी का अन्त मीठा होता है....बेटो, धन तो दुनिया में सब कमा सकते हैं....दुनिया के साथ में जहरीले लोगों के बीच में ईमान कमाना व उसकी रक्षा करना सबके बस की बात नहीं.....लेकिन ईमानदारी का फल मेरे जैसा ही हो सकता है....मेरे पास तुम्हारे लिए देने के लिए और कुछ नहीं है, बेटा ! बस, जो तुम्हारे भाग्य में हो व मन में आए....वही करना......।’’ कहकर एक दिन बूढ़े कुम्हार ने आँखें मूँद लीं।
दूसरी ओर जो भी शिकारी एक बार उनके पास आ जाता तो वहीं शिकार करते-करते धनवान हो जाता। उन्हें इस बात का रहस्य कभी ज्ञात न हो पाता। क्या किसी की हत्या करने पर ही धनवान बना जाता है ? वे अक्सर सोचते रहते। जब कुम्हार के बच्चे अपने खाने-पहनने की चीजों की माँग कभी उनसे करते तो उनकी बूढ़ी माँ कुम्हार को कोसने लग जाती है। यह देख बच्चों को भी बहुत कष्ट होता। एक दिन बूढ़े कुम्हार ने अपने सभी बच्चों को बुलाया व समझाते हुए कहा-
‘‘बच्चो ! देखो मैंने जीवन-भर ईमानदारी व सच्चाई से कार्य किया है। कहीं मेहनत में भी कोई कमी नहीं छोड़ी है.....लेकिन फिर भी गरीब का गरीब ही बना रहा......इसमें मेरा क्या दोष ? भला इससे अधिक मेरे हाथ में था भी क्या......अब तुम भी इसी प्रकार अपना जीवनयापन करना.... सच्चाई व ईमानदारी का अन्त मीठा होता है....बेटो, धन तो दुनिया में सब कमा सकते हैं....दुनिया के साथ में जहरीले लोगों के बीच में ईमान कमाना व उसकी रक्षा करना सबके बस की बात नहीं.....लेकिन ईमानदारी का फल मेरे जैसा ही हो सकता है....मेरे पास तुम्हारे लिए देने के लिए और कुछ नहीं है, बेटा ! बस, जो तुम्हारे भाग्य में हो व मन में आए....वही करना......।’’ कहकर एक दिन बूढ़े कुम्हार ने आँखें मूँद लीं।
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